Singrauli News : सरकारी नौकरी करने वाले हों या फिर कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिक सरकार हर किसी को उनके बुढ़ापे के सहारे के लिए कुछ न कुछ पेंशन फंड जमा कराती है और नियमों के तहत उस व्यक्ति को देती है लेकिन किसानों के लिए सरकार के पास प्रत्येक माह बतौर पेंशन देने के लिए कुछ नहीं है? यह सवाल 67 वर्षीय किसान उमा प्रसाद शाह निवासी ग्राम चांचर बसौड़ा के जेहन में कई दशक पहले से गूंज रहा था। जिज्ञास्तवश उन्होंने यही सवाल अपने पिता पुरूषोतम शाह से कई दशक पहले पूछा था। उनका जवाब था कि किसान को परिवार का पेट भरने के लिए खेती चाहिए। बस इसी जवाब ने उमा प्रसाद को बागवानी करने के लिए प्रोत्साहित किया और आज 3 एकड़ में लगे तकरीबन 300 आंवले के पौधे उन्हें ठीकठाक पेंशन की राशि दे जा रहे हैं। किसान उमा प्रसाद को विरासत में ठीकठाक जमीन मिली है। खेती किसानी में मन लगा तो कई छोटे-बड़े व्यवसाय भी किए। उन्हें भी जमाया और अपने बच्चों के साथ कई तरह के व्यवसायों को आगे बढ़ाते रहे। लेकिन कभी भी खेती किसानी की तरफ की मुख नहीं मोड़ा पिता जी के निर्देश पर उन्होंने उद्यानिकी विभाग से संपर्क किया और 2006 में उन्होंने अपने तीन एकड़ खेत में आंवले के पौधे लगाने का विचार किया।
एक क्विंटल प्रति पौधा तक पहुंचा उत्पादन
उद्यानिकी के अधिकारियों ने उन्हें प्रतापगड़ी आंवले की वेरायटी वाले 400 पौधे दिए और उनके रोपने से लेकर एक साल तक देखरेख की विधि भी बतायी। इसी तरह जिले के कई लोगों ने बागवानी के लिए आगे आकर आंवले के पौधे लगाए थे। तीन साल बाद ही पौधों में फल आने शुरू हो गये। 2009 में तकरीबन 300 आंवले के पौधों में आधा एक किग्रा प्रति पौधे के हिसाब से फल लगने शुरू हो गये। उसके बाद प्रत्येक वर्ष पौधे में फल लगने की ग्रोथ बढ़ती गई। इस वर्ष या पैदावार बढ़कर 100 किग्रा प्रति पौधे तक पहुंच गयी है।
चल रहा है आंवला तुड़ाई का सीजन
कृषि वैज्ञानिकों की दृष्टिकोण से कार्तिक के महीने में आंवले की फसल की तुड़ाई की जाती है लेकिन मिथक यह भी है कि विजयादशमी से पहले आंवले के फल को नहीं तोड़ा जाता है इसलिए दशहरे के बाद से आंवला तेजी से बाजार में आना शुरू हो जाता है। इस सीजन की आधे से अधिक तुड़ाई हो चुकी है। बड़े साइज वाले ऑवला तोड़े जा चुके हैं और कुछ पौधे जो अलग वैराइटी के हैं उन्हें फिलहाल रोका गया है, जो अगले महीने तोड़ लिए जायेंगे।
स्थानीय बाजार में ही बिक जाता है आंवला
किसान उमा प्रसाद शाह बताते है कि लगभग 15 वर्षों से वे आंवले का उत्पादन कर रहे हैं लेकिन उन्हें आंवले की बिक्री के लिए कहीं जाना नहीं पड़ा। वैढन, मोरवा और शक्तिनगर सहित स्थानीय बाजारों में ही यह आंवला खप जाता है। कुछ व्यापारी पौधे की फसल का अनुमान लगाकार दाम लगा देते हैं और तोड़कर ले जाते हैं। चाग में व्यापारी 25 से 30 रूपये किलो का रेट देते हैं जो बाजार में 40 से 50 रुपये प्रतिकिग्रा तक बिकता है। यदि 25 रूपये किलो औसत माना जाये तो एक पेड़ 2500 रूपये देता है। प्रतिवर्ष 7.50 लाख रूपये की आय हो जाती है।
किसान उमा प्रसाद शाह बताते हैं कि आंवले के पौधों की कलम लगायी गयी थी, इसलिए इन पौधों की उम्र 50 से 60 साल है। कलम से लगे पौधे इससे अधिक नहीं चल पाते है क्योंकि इनसे उत्पादन भी अधिक होता है। इसके बजाय बीजू पौधे लगाने से उनकी उम्र 100 साल से अधिक होती है। वैज्ञानिक जानकारी के साथ आवलों के पौधों को यदि समय पर सिंचाई और जरूरत के अनुसार हरी खाद दी जाए तो 50 वर्षों तक एक से डेढ़ क्विंटल आंवला प्रति पौधे के हिसाब से उपज ली जा सकती है।
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