High Court Jabalpur Order : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जमीन लेकर पिछले 45 साल तक मुआवजा नहीं देने के मामले में सख्त रुख अपनाया है। जस्टिस जीएस आहलूवालिया की एकलपीठ ने रेलवे पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है। इतना ही नहीं कोर्ट ने इतने वर्षों का ब्याज सहित किराया भी देने के निर्देश दिए। इसके अलावा नए भूमि स्वामी अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजा भुगतान के निर्देश भी दिए। कोर्ट ने यह प्रक्रिया एक माह में पूरी करने के निर्देश दिए।
क्या है पूरा मामला?
कटनी निवासी केशव कुमार निगम की ओर से अधिवक्ता अजय रायजादा ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिका लंबित रहने के दौरान केशव की मृत्यु हो गई, इसलिए उनके वारिसानों शशि निगम, राकेश निगम, अनुराधा श्रीवास्तव व रजनी मेंदेकर के नाम जोड़े गए। दरअसल, रेलवे को लोको शेड निर्माण हेतु भूमि की आवश्यकता थी। याचिकाकर्ता की 0.45 एकड़ भूमि के अधिग्रहण की कार्रवाई की गई। रेलवे को 17 फरवरी 1979 को भूमि का कब्जा प्राप्त हो गया। इसके बाद भू-अर्जन की कार्यवाही लगभग 20 वर्ष तक चली, लेकिन रेलवे ने मुआवजा राशि जमा नहीं की।
इसके बाद भू- अर्जन का प्रकरण समाप्त कर दिया गया। इस पर याचिकाकर्ता ने वर्ष 2002 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। आश्चर्य है कि पिछले 22 सालों में याचिका लंबित रहने के दौरान राज्य शासन की ओर से कोई जवाब पेश नहीं किया गया। रेलवे ने अपने जवाब में कहा कि अवॉर्ड पारित हो गया है और 37 हजार रुपए की राशि ब्याज सहित जमा कर दी गई है। अधिवक्ता रायजादा ने बताया कि रेलवे गलत बयान कर रही है और अभी तक कोई अवॉर्ड पारित नहीं किया गया है.
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